Thursday 13 October 2016

You don't have to be religious to be moral.....REALLY??? (part-1)

आधुनिकता के इस दौर में जहाँ एक ओर प्रगति के नाम पर जहाँ करुणा, संवेदनशीलता  जैसे मानवीय गुणों की हत्या की जा रही है वहीँ दूसरी ओर निजी स्वार्थों एवं राजनीतिक हितों के लिए धर्म , जाति  आदि के नाम पर लोगों के मन में जहर भरा जा रहा है। जिस देश में 'सर्व धर्म समभाव ' की नीति सर्वोपरि व सर्वमान्य थी वहाँ अब धर्म के नाम पर दंगे किये जा रहे हैं। जिस देश में 'हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई - सब मिलकर हैं भाई भाई ' जैसे नारे लगाए जाते थे वहाँ अब एक धर्म के लोगों को दूजे धर्म के लोग फूटी आँख नहीं सुहाते। और नैतिकता की बात न करें तो ही बेहतर होगा। कहते हैं सम्राट अशोक के राज्यकाल में लोग घरों से बाहर जाते समय ताला लगाना आवश्यक नही समझते थे क्योंकि उस दौर में चोरी नही हुआ करती थी किन्तु आज हालात कुछ ऐसे हैं कि कितना ही मजबूत ताला क्यों न हो वह चोर को चोरी करने से नहीँ सकता, कहने का तात्पर्य है कि आज के दौर में लोगों का नैतिकता स्तर कितना गिर गया है। महानगरों में अपराध का स्तर बढ़ता जा रहा है तथा प्रशासन चाहकर भी कुछ नही कर पा रहा है।
जब भी इन अपराधों के कारणों पर गौर किया जाता है तो सबसे महत्त्वपूर्ण कारण उभर कर आता है - जनसाधारण में नैतिकता का अभाव। अब नैतिकता कोई भौतिक वस्तु तो है नहीँ कि उसकी कमी हुई तो बाजार से खरीद कर ले आये और उपयोग में ले ली अपितु वह तो एक गुण है जो कि व्यक्ति के भीतर विकसित किया जा सकता है उसकी उचित परवरिश द्वारा। कुछ धर्म के ठेकेदार तो यहाँ तक कह देते हैं कि फलां धर्म का यदि एक अनैतिक व्यक्ति अनुसरण  करे तो उसे नैतिक बनाया जा सकता है। जब उनके इस दावे पर वाद विवाद किया जाता है तो उनका यह अनुचित सा तर्क होता है कि हमारे धर्म के सिद्धांत कुछ ऐसे हैं कि वे उस अनैतिक व्यक्ति का मन द्रवित कर देंगे तथा उसे नैतिक पथ अपनाने के लिए विवश होना पड़ेगा किन्तु उन धर्म के ठेकेदारों से मेरा एक साधारण सा सवाल है कि क्या कोई ऐसा धर्म होगा जो किसी भी व्यक्ति को अनैतिक राह  दिखायेगा, और अवश्य ही वह वर्तमान में किसी न किसी धर्म को तो मानता ही होगा और यदि उसने वर्तमान धर्म के सिद्धांतों का अनुसरण नही किया तो क्या भरोसा भविष्य में वह अनुसरण करेगा ? अतः मेरा मत उन से भिन्न है कि आवश्यक नही कि नैतिक होने के लिए धार्मिक हो। 
इस विषय पर और अधिक विस्तार से वर्णन किया जायेगा किन्तु इस श्रृंखला की अगली प्रस्तुति में। 
धन्यवाद